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प्राकृतिक खेती से किसानों को होगा फायदा, जल्द ही देश के किसान होंगे मालामाल

प्राकृतिक खेती से किसानों को होगा फायदा, जल्द ही देश के किसान होंगे मालामाल

वर्तमान में केमिकल युक्त खेती के दुष्परिणामों की देखते हुए सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए सरकार ने इस साल के बजट में प्राकृतिक खेती के लिए अलग से प्रावधान किया है। केंद्र सरकार के साथ-साथ हरियाणा की सरकार भी प्राकृतिक खेती को लेकर बेहद जागरुक है। इसके साथ ही हरियाणा की सरकार ने किसानों को जागरुक करने के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत राज्य सरकार ने साल 2022 में छह हजार एकड़ में किसानों से प्राकृतिक खेती कराई है। इसको राज्य के 2238 किसानों ने अपनाया है। किसानों के रुझान को देखते हुए हरियाणा सरकार ने साल 2023 में राज्य में 20 हजार एकड़ में प्राकृतिक खेती कराने का लक्ष्य रखा है। हरियाणा की सरकार ने किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को प्रचारित करने के लिए 'भरपाई योजना' को भी लागू किया है। इसके अंतर्गत प्राकृतिक खेती अपनाने वाले हर किसान को प्रति एकड़ के हिसाब से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। सरकार ने 'भरपाई योजना' को इसलिए लागू किया है क्योंकि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को शुरुआत में उत्पादन कम प्राप्त होता है। लेकिन प्राकृतिक खेती करने से भूमि की उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है। जो किसानों के लिए लंबे सामयांतराल में फायदेमंद होता है। किसान भाइयों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देने के लिए हरियाणा की सरकार ने राज्य में कई ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए हैं। इसके लिए फिलहाल कुरुक्षेत्र गुरुकुल और करनाल के घरौंडा में बड़े ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए  हैं। इसके साथ ही सरकार ने राज्य में 3 और ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया है। इन ट्रेनिंग सेंटरों का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार जागरूकता अभियान शुरू करने जा रही है। इसकी शुरुआत सिरसा जिले से होगी। सिरसा जिले में यह अभियान पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया जा रहा है। यदि यहां पर यह अभियान सफल रहता है तो बाद में इसे चरणबद्ध तरीके से पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। इस जागरूकता अभियान में किसानों को उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग, पानी का समुचित उपयोग, फसल स्वास्थ्य निगरानी, मृदा स्वास्थ्य निगरानी, कीट निगरानी, सौर ऊर्जा का उपयोग और सूक्ष्म सिंचाई तकनीक के माध्यम से पानी के समुचित उपयोग के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। ये भी देखें: सिंचाई की नहीं होगी समस्या, सरकार की इस पहल से किसानों की मुश्किल होगी आसान इन दिनों भारत में किसानों के द्वारा प्राकृतिक खेती तेजी से अपनाई जा रही है। जिसके कई स्वदेशी रूप हैं। प्राकृतिक खेती का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा दक्षिण भारतीय राज्यों में है। दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में प्राकृतिक खेती बेहद लोकप्रिय है। आंध्र प्रदेश के साथ ही प्राकृतिक खेती छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु के अलावा कई राज्यों में की जा रही है। यह खेती प्राकृतिक या पारिस्थितिक प्रक्रियाओं (जो खेतों में या उसके आसपास मौजूद होती हैं) पर आधारित होती है जो पेड़ों, फसलों और पशुधन को एकीकृत करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकती है।
भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए क्यों और किस तरह से बढ़ावा दे रही है

भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए क्यों और किस तरह से बढ़ावा दे रही है

भारत के अंदर शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) टिकाऊ एवं फायदेमंद दोनों होने की क्षमता रखती है। हालांकि, बहुत सारे कारक इसकी सफलता और लाभप्रदता को प्रभावित करते हैं। लागत-मुनाफा अनुपात के मुताबिक, यह दीर्घकाल में तभी फायदेमंद हो सकता है। जब एक स्थापित मूल्य श्रृंखला के साथ बड़े स्तर पर किया जाए और लघु स्तरीय किसानों के लिए इससे उबरना कठिन साबित होगा।

ZBNF के तहत स्थिरता

ZBNF जैविक कृषि पद्धतियों, मृदा संरक्षण एवं जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है, जो दीर्घकालिक स्थिरता में सहयोग प्रदान करता है। रासायनिक आदानों को खत्म करके, ZBNF मृदा के स्वास्थ्य, जैव विविधता एवं पारिस्थितिक संतुलन को प्रोत्साहन देता है। यह बाहरी इनपुट पर निर्भरता को कम करता है, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है एवं कृषि प्रणाली में भी काफी सुधार करता है।

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ZBNF के अंतर्गत लागत में बचत

ZBNF के मुख्य सिद्धांतों में से एक बाहरी इनपुट को समाप्त करना और लागत को कम करना है। स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके और प्राकृतिक कृषि तकनीकों को अपनाकर, किसान रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं बीजों के खर्च को कम अथवा समाप्त कर सकते हैं। इससे वक्त के साथ महत्वपूर्ण लागत बचत हो सकती है, जिससे कृषि कार्यों की लाभप्रदता बढ़ सकती है।

मृदा स्वास्थ्य एवं पैदावार में सुधार

ZBNF प्रथाएं मल्चिंग, कम्पोस्टिंग एवं इंटरक्रॉपिंग जैसी तकनीकों के माध्यम से मृदा की उर्वरता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। ये विधियाँ मिट्टी की संरचना, जल-धारण क्षमता एवं पोषक तत्वों की विघमानता को बढ़ाती हैं, जिससे फसल की पैदावार में सुधार होता है। बढ़ी हुई उत्पादकता एवं लाभप्रदता पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। विशेष कर यदि किसान उन बाजारों तक पहुंच सकते हैं, जो जैविक पैदावार को पहचानते हैं और प्रीमियम का समय से भुगतान करते हैं।

ZBNF के अंतर्गत स्वास्थ्य जोखिम और इनपुट निर्भरता में कमी

रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों को समाप्त करके, ZBNF कृषकों एवं उपभोक्ताओं के लिए उनके इस्तेमाल से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करता है। यह महंगे बाहरी इनपुट पर निर्भरता को भी काफी कम करता है, जिससे खेती का काम ज्यादा आत्मनिर्भर और मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति सहज हो जाता है।

ZBNF के अंतर्गत जैविक उपज की बाजार मांग

भारत और विश्व स्तर पर जैविक एवं रसायन-मुक्त उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। ZBNF इस बाजार प्रवृत्ति के साथ संरेखित होता है, जिससे किसानों को प्रीमियम बाजारों में प्रवेश करने और अपनी जैविक उपज के लिए उच्च मूल्य प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। हालाँकि, इन बाजारों तक पहुँचना एवं प्रभावी ढंग से स्थिरता कायम करना एक चुनौती हो सकती है, और लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए बाजार संपर्क विकसित करने की जरूरत है।

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ZBNF के अंतर्गत ज्ञान और क्षमता निर्माण

ZBNF के सफल कार्यान्वयन के लिए किसानों को पर्याप्त ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। आवश्यक प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और ज्ञान-साझाकरण मंच प्रदान करने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम, सरकारी सहायता और कृषि संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। ZBNF प्रथाओं में सूचना, अनुसंधान और नवाचारों तक पहुंच स्थिरता और लाभप्रदता को और बढ़ा सकती है।

भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक खेती को इस तरह से प्रोत्साहन दे रही है

सरकार प्राकृतिक खेती समेत पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं को प्रोत्साहन देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की एक उप-योजना के रूप में 2020-21 के दौरान चलाई गई भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) के जरिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दे रही है। यह योजना विशेष रूप से समस्त सिंथेटिक रासायनिक आदानों के बहिष्कार पर बल देती है। साथ ही, बायोमास मल्चिंग, गाय के गोबर-मूत्र फॉर्मूलेशन के इस्तेमाल और अन्य पौधे-आधारित तैयारियों पर विशेष जोर देकर खेत पर बायोमास रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहन देती है। बीपीकेपी के अंतर्गत क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा निरंतर सहायता, प्रमाणन एवं अवशेष विश्लेषण के लिए 3 सालों के लिए 12,200 रुपये प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता मुहैय्या कराई जाती है।

प्राकृतिक खेती के तहत 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल को कवर किया गया है

कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, प्राकृतिक खेती के अंतर्गत 4.09 लाख हेक्टेयर रकबे को कवर किया गया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि देश भर के 8 राज्यों को कुल 4,980.99 लाख रुपये का फंड जारी किया गया है। जबकि ZBNF में टिकाऊ और लाभदायक होने की क्षमता है, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परिणाम स्थानीय कृषि-जलवायु स्थितियों, फसल चयन, बाजार की गतिशीलता, किसानों के कौशल और संसाधनों तक पहुंच जैसे अहम कारकों के आधार पर अलग हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, ZBNF में परिवर्तन के लिए प्रारंभिक निवेश, मिट्टी के स्वास्थ्य की बहाली के लिए समय और किसानों के लिए सीखने की स्थिति की जरूरत हो सकती है। हालाँकि, उचित कार्यान्वयन, समर्थन एवं बाजार संबंधों के साथ, ZBNF भारत में एक टिकाऊ एवं लाभदायक कृषि मॉडल प्रस्तुत कर सकता है।